यह कहानी नेहा मुजावदिया की है, जिन्होंने एक छोटे से गांव से निकलकर शिक्षा और उद्यमिता की दुनिया में अपनी पहचान बनाई। उनकी यह यात्रा सामाजिक दबावों, आर्थिक चुनौतियों और पुरानी सोच के खिलाफ एक मिसाल है।
नेहा मुजावदिया मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के मेलखेड़ा गांव से हैं। यह लगभग 2000 लोगों की आबादी वाला छोटा सा गांव है। इस छोटे से गांव से निकलकर नेहा ने उद्यमिता की दुनिया में अलग पहचान बनाई है। तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए उन्होंने ट्यूशन स्टार्टअप खड़ा किया है। इसका नाम ट्यूटरकैबिन (TutorCabin) है। 2018 में सिर्फ 50,000 रुपये से उन्होंने इसकी शुरुआत की थी। आज यह 50 लाख के टर्नओवर वाला वेंचर बन चुका है। आइए, यहां नेहा मुजावदिया की सफलता के सफर के बारे में जानते हैं।
मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव मेलखेड़ा की रहने वाली नेहा मुजावदिया का बचपन संघर्षों से भरा था। उनके गांव में सिर्फ आठवीं क्लास तक ही एक सरकारी हिंदी मीडियम स्कूल था। गांव की सोच थी कि लड़कियों को शादी करके घर-परिवार संभालना होता है। इसलिए उन्हें ज्यादा पढ़ाना बेकार है। लेकिन, नेहा ने इस सोच को चुनौती दी। आठवीं के बाद वह हर दिन 8 किमी दूर स्थित स्कूल जाती थीं। ऐसा करके उन्होंने 2006 में 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की। गांव के लोगों ने उनके माता-पिता का विरोध किया। लेकिन, नेहा ने हार नहीं मानी। 2009 में ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने इंदौर जाकर एमबीए करने का फैसला किया। यह उनके गांव से 200 किमी दूर था। गांव वालों ने उनके माता-पिता को इस फैसले के लिए 'मूर्ख' तक कहा। लेकिन, नेहा ने हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखी।
एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद नेहा ने इंदौर के एक कोचिंग संस्थान में नौकरी की। कुछ सालों तक वहां पढ़ाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि छात्रों को दी जा रही फीस के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल रही है। साथ ही, उन्हें छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए कुछ करने की इच्छा थी। यहीं से उनके मन में एक एड-टेक स्टार्टअप शुरू करने का विचार आया। साल 2018 में उन्होंने सिर्फ 50,000 रुपये के शुरुआती निवेश से ट्यूटरकैबिन (TutorCabin) की शुरुआत की। उन्होंने अपने कुछ शिक्षक दोस्तों के साथ मिलकर काम शुरू किया। ये कम वेतन पर भी उनके साथ जुड़ने को तैयार हो गए।
शुरू में ट्यूटरकैबिन एक छोटी सी कोचिंग थी। इसमें केवल 20 स्टूडेंट थे। लेकिन, बेहतर कोचिंग और कम फीस के कारण इसका नाम जल्द ही दूर-दूर तक फैल गया। पहले साल में ही नेहा ने स्टार्टअप से 5 लाख रुपये का रेवेन्यू कमाया। फिर इसने जोरदार रफ्तार पकड़ ली। महामारी का दौर उनके लिए वरदान साबित हुआ। कारण है कि उन्होंने अपने व्यवसाय को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट कर दिया। इससे उन्हें पूरे देश से छात्रों और शिक्षकों को जोड़ने का मौका मिला। देखते ही देखते उनका रेवेन्यू बढ़ता गया और एक छोटे से गांव की लड़की का सपना एक बड़े स्टार्टअप में बदल गया।
आज नेहा मुजावदिया अपने गांव की लड़कियों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। जो लोग कभी उनके माता-पिता का विरोध करते थे, आज वही अपनी बेटियों को उनसे सीख लेने के लिए कहते हैं। नेहा अपने काम को ही अपना सपना मानती हैं। इसलिए वह थकती नहीं हैं। नेहा ने अपने गांव में एक स्कूल और एक पुस्तकालय बनाने की योजना बनाई है ताकि वहां के बच्चों को बेहतर शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिल सके। वह महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी काम कर रही हैं। उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने में मदद कर रही हैं। नेहा की कहानी दर्शाती है कि अगर आपमें कुछ कर दिखाने का जुनून हो तो सामाजिक बाधाएं भी आपके रास्ते को रोक नहीं सकतीं।