नमो दैव्ये महा दैव्ये : गांव के बच्चों के शहर से पीछे होने की कसक ने बना दिया 'ट्यूटर केबिन'

आलोक शर्मा, मंदसौर। मंदसौर जिले की शामगढ़ तहसील के गांव मेलखेड़ा की युवती नेहा मुजावदिया जब पहली बार एमबीए करने इंदौर पहुंची तो अहसास हुआ कि गांवों के बच्चे शहरों के मुकाबले कितने पीछे हैं। बस इसी कसक में एक आनलाइन टीचिंग स्टार्टअप 'ट्यूटर केबिन' का जन्म हो गया। बात यहीं तक रुकती तो ठीक था पर इस स्टार्टअप के पीछे लगन थी और गांव के बच्चों के लिए कुछ न कुछ करने की तमन्ना से लगातार मेहनत की और अब इस प्लेटफार्म से 1500 से ज्यादा टीचर और 87 हजार से ज्यादा बच्चे जुड़े हुए हैं। सालाना टर्न ओवर भी 50 लाख रुपये तक पहुंच गया है। वहीं गांव के बच्चों को शहरों के मुकाबले तैयार करने के लिए नर्सरी से कक्षा आठ तक का आनलाइन स्कूल भी इसी शिक्षा सत्र से शुरू कर चुकी हैं।

इस स्टार्टअप के पीछे की गई मेहनत का अंदाजा ही इससे लगाया जा सकता है कि भारत सरकार की तरफ से हाल ही में दुबई गए एक प्रतिनिधिमंडल में शिक्षा के क्षेत्र से एकमात्र नेहा मुजावदिया को ही चुना गया। नेहा ने 2018 में ट्यूटर केबिन प्रारंभ करने के बाद तीन से चार साल में इतनी मेहनत की कि आइआइएम बेंगलुरु ने भी बेस्ट स्टार्टअप का अवार्ड दिया।

कोरोना काल के दौरान विद्यार्थियों में आनलाइन एजुकेशन की तरफ झुकाव बढ़ा है। नेहा मुजावदिया देश ही नहीं विदेशों तक बच्चों को ट्यूशन दे रही हैं। नर्सरी से महाविद्यालय तक हर क्लास और कोर्स की ट्यूशन प्रोवाइड कराती हैं। इसमें जर्मन, फ्रेंच सहित अन्य विदेशी भाषा भी शामिल हैं। हाल ही में नेहा ने अमेरिका में रहने वाले भारतीय बच्चों को पढ़ाना शुरू किया है।

इंदौर जाकर पता चला अब तक जो पढ़ा वह कुछ भी नहीं : नेहा ने बताया कि शुरुआती पढ़ाई ग्राम मेलखेड़ा में ही हुई है। पिता गांव में ही हार्डवेयर को दुकान हैं। गांव में पढ़ाई का माहौल नहीं था। मैं पढ़-लिखकर खुद के बल पर कुछ करना चाहती थी। जिद कर आगे पढ़ाई करती गई। 2008 के अंत में एमबीए की पढ़ाई करने इंदौर गई। वहां जाकर पता चला कि अभी तक जो पढ़ा वह कुछ नहीं हैं। इंदौर में शिक्षा का स्तर ही अलग था। पढ़ाई के साथ खर्च निकालने के लिए कुछ बच्चों को घर जाकर पढ़ाने लगी।

कुछ समय तक पढ़ने और पढ़ाने का सिलसिला चलता रहा। पर इस दौरान जिन समस्याओं का सामना किया उनसे दूसरे बच्चों को बचाने के लिए मन में कुछ न कुछ नया करने की कोशिश चलती रही। 2018 में जाकर सीमित बजट के साथ होम ट्यूशन का स्टार्टअप ट्यूटर केबिन शुरू किया। शुरूआत में 10 टीचर जुड़े थे। धीरे-धीरे पहचान बढ़ने लगी। और अब बड़ा परिवार हो गया हैं। इंदौर के बाद भोपाल में भी स्टार्टअप शुरू कर दिया है।

 

कोरोना के बाद एक आनलाइन एप व वेबसाइट लांच की

नेहा ने बताया कोरोना काल मे इंदौर-भोपाल के सभी स्कूल और कोचिंग संस्थान बंद हो गए। बच्चों को आनलाइन प्लेटफार्म पर शिफ्ट होना पड़ा। स्थिति देखते हुए हमने मोबाइल एप और वेबसाइट लांच की। मोबाइल एप में लाग इन करने के बाद बच्चों को टापिक और शेड्यूल मुताबिक टीचर्स मिलते हैं। इसमें सब्जेक्ट, टापिक, समय से लेकर सब कुछ तय है। बच्चों के मोबाइल पर नोटिफिकेशन और रिमाइंडर भेजे जाते हैं। ज्यादातर टीचर बच्चों को अकेले ही पढ़ाते हैं। कुछ बच्चों के लिए ग्रुप स्टडी की सुविधा है। इसमें अधिकतम पांच बच्चे शामिल होते हैं।

 

गांव के बच्चों पर पूरा फोकस

मेरा फोकस अभी गांव में रह रहे बच्चों को आनलाइन शिक्षा के साथ स्किल डेवलपमेंट एजुकेशन भी उपलब्ध कराना है। गांवों में पढ़ाई का लेवल इतना अच्छा नहीं होता। छोटे बच्चों को पालक पढ़ाई के लिए बाहर नहीं भेज सकते हैं। खासकर लड़कियों के लिए बड़ी समस्या हैं। गांव के बच्चे शहर के बच्चों के साथ मुकाबला कर सके इसके लिए काम कर रही हूं। इस बार से नर्सरी से आठवीं तक के बच्चों के लिए आनलाइन स्कूल शुरु कर दिया हैं। इससे गांव में रहते हुए बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सकेगी। - नेहा मुजावदिया

Neha Mujawdia

Neha Mujawdia

Neha Mujawdia is the owner of Tutor Cabin in Indore. She had involved into multiple works related to educating the youth and contributes and achieved a lot in it. Her business strives for performing the same tasks.

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